भारत चावल का एक बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है. यहां चावल की ऐसी पारंपरिक और उन्नत किस्मों की जाती है, जो देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है. इन्हीं किस्मों में शामिल है उड़ीसा का काला चावल . बता दें कि उड़ीसा राज्य में काले चावल की खेती काफी पुराने समय से ही चली आ रही है.ये चावल की दुर्लभ किस्म है, जिसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और कैंसर रोधी गुण पाये जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काले चावल की काफी मांग कहती है. इसके बावजूद उड़ीसा के ज्यादातर किसान इसकी खेती करने से कतरा रहे हैं.
क्यों है किसानो को परेशानी
दरअसल, दुर्लभ प्रजाति होने के कारण काला चावल उगाने में दुनियाभर की मेहनत लगती है. इसकी खेती के समय कई बातों का खास ख्याल भी रखना होता है. इसके बावजूद प्रति एकड़ जमीन पर काले चावल की कम ही उपज मिलती है. इतनी मेहनत के बावजूद राज्य में किसानों को काला चावल का सही बाजार और उचित सरकारी सहायता तक भी पहुंच नहीं मिल पाती.यही कारण है कि किसानों को मेहनत के मुकाबले कम फायदों में भी संतोष करना पड़ता है. बता दें कि काला चावल की खेती उड़ीसा के संबलपुर जिले के जुजुमारा क्षेत्र और जगतसिंहपुर जिले के रेडहुआ में की जा रही है.
इस पर कृषि वैज्ञानिकों का क्या कहना है
इस मामले में धान के वैज्ञानिकों का मानना है कि काला चावल की पारंपरिक किस्में अधिक उत्पादन नहीं दे पाती, जिसके कारण किसानों को कम उपज और कम आमदनी में संतोष करना पड़ रहा है. यही कारण है कि ज्यादातर किसान अब काला चावल के दूसरे विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं.
किसानों को क्यों लगता है नुकसान का सौदा
दरअसल प्रति एकड़ जमीन पर काला चावल की खेती करने से सिर्फ 10 क्विंटल तक ही उत्पादन मिलता है.
ये चावल की कमजोर किस्म है, जिसकी फसल में हल्की हवा लगने पर ही काफी नुकसान झेलना पड़ जाता है.
इसके अलावा उड़ीसा के बाजारों में काला चावल की ज्यादा मांग नहीं रहती, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक ये चावल पहुंचाने के लिये किसानों के पास सही जानकारी का अभाव है.
बता दें कि अंतराष्ट्रीय बाजार में काला चावल का भाव 250 रुपये से 1500 रुपये के भाव पर बेचा जाता है. बढ़ती कीमतों के बावजूद विदेशों में काला चावल की मांग कम नहीं हुई है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, काले धान की संकर किस्मों या हाइब्रिड बीज बनाने पर शोध कार्य चल रहे हैं, जिसके धान की मजबूत उन्नत किस्म विकसित की जा रही है.
कितनी किस्म की होती है काली चावल
भारत के उड़ीसा राज्य में कलाबाती धान यानी चावल की पारंपरिक किस्में उगाई जा रही है. धान की इस किस्म को क्षेत्रीय किसान कालाबैंशी के नाम से भी जानते हैं, जो बुढापे को रोकता है यानी एंटी एजिंग गुणों से भरपूर है. उडीसा के अलावा ये काला चावल त्रिपुरा और मणिपुर के पहाड़ियों में जैविक विधियों से उगाया जाता है. की जाती है.