रोपाई का तरीका
चौलाई की खेती बरसात और गर्मी दोनों मौसम में की जाती है. इसलिए इसकी रोपाई मौसम के अनुसार की जाती है. गर्मी के मौसम में इसकी पैदावार लेने के लिए किसान भाइयों को इसकी रोपाई फरवरी के लास्ट या मार्च के शुरुआत में कर देनी चाहिए. जबकि बारिश के वक्त पैदावार लेने के लिए इसकी रोपाई मई से लेकर जून माह के शुरुआत तक की जाती है. इसके अलावा जो किसान भाई रबी के दौरान कम समय की कंद वर्गीय सब्जी उगाना चाहता है. वो इसकी रोपाई अगस्त और सितम्बर माह में भी कर सकता है.
चौलाई के बीजों की रोपाई छिडकाव और ड्रिल के माध्यम से की जाती है. छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान चौलाई के बीजों को समतल की हुई भूमि में छिड़क देते हैं. उसके बाद कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की एक बार हल्की जुताई कर देते हैं. इससे बीज अच्छे से मिट्टी में मिल जाता है.
जबकि ड्रिल के माध्यम से इसकी रोपाई कतारों में की जाती है. कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतारों के बीच आधा फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और कतारों में बीजों के बीच 5 से 10 सेंटीमीटर के बीच दूरी होनी चाहिए. दोनों तरीके से रोपाई के दौरान इसके बीजों को जमीन में लगभग दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में उगाना चाहिए.
पौधों की सिंचाई
चौलाई के बीजों की रोपाई नम भूमि में की जाए तो शुरुआत में बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पानी नही देना चाहिए. लेकिन अगर इनकी रोपाई किसान भाई सुखी भूमि में करता है तो बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पानी दे देना चाहिए. और अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाकर रखनी चाहिए.
बीजों के अंकुरित होने के बाद इसके पौधों की पहली सिंचाई 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए. लेकिन हरी फसल के रूप में इसकी पत्तियों को बेचने के लिए इसके पौधों को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार पानी जरुर देना चाहिए. इसके अलावा बारिश के मौसम में पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. चौलाई के पौधों पर बीज बनने के दौरान खेत में नमी बनाए रखने से पैदावार अधिक मिलती है.
उर्वरक की मात्रा
चौलाई के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत तब होती है, जब इसी पैदावार हरी पत्तियों की कटाई के लिए की जाती है. इस दौरान पौधों को बार बार विकास करने के लिए पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की जुताई के वक्त खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें.
रासायनिक खाद के रूप में 30 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश की मात्रा को बीज रोपाई से पहले खेत की आखिरी जुताई के वक्त मिट्टी में मिला देना चाहिए. इसके अलावा 20 यूरिया की मात्रा प्रत्येक हरी फसल की कटाई के बाद पौधों में देनी चाहिए. इससे पौधे जल्दी से विकास करने लगते हैं.
खरपतवार नियंत्रण
चौलाई के पौधों में खरपतवार नियंत्रण काफी जरूरी तब होता है, जब इसकी पैदावार हरी पत्तियों के लिए की जाती है. क्योंकि खरपतवारों में पाए जाने वाले कीट इसकी पत्तियों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे उनकी गुणवत्ता और पैदावार दोनों कम हो जाती है. चौलाई के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है.
प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसकी रोपाई के 10 से 12 दिन बाद जब खेत में खरपतवार नजर आने लगे तब खेत की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए. हरी पत्तियों की कटाई के रूप में इसकी पैदावार के दौरान हर कटाई के बाद इसके पौधों की एक बार गुड़ाई करना अच्छा होता है. लेकिन इसकी पैदावार करने के दौरान इसके पौधों की दो गुड़ाई ही काफी होती है. इसके पौधों की दूसरी गुड़ाई बीज रोपाई के 40 दिन बाद करनी चाहिए. दोनों गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
चौलाई के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी अगर वक्त रहते देखभाल ना की जाए तो पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. और पौधों में काफी ज्यादा नुक्सान भी देखने को मिलता है.
पर्ण जालक
चौलाई के पौधों में पर्ण जालक का रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. इस रोग की सुंडी पौधे की पतियों को खाकर उन्हें जालीदार बना देती है. जिसके बाद उन पत्तियों को अपनी लार के माध्यम से आपस में जोड़ देती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्यूनालफास या डाई मिथेएट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
ग्रासहोपर
ग्रासहोपर कीट
चौलाई के पौधों में लगने वाले ग्रासहोपर कीट को टिड्डी के नाम से भी जाना जाता है. जो पौधे की पत्तियों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है. इसके लगने से पैदावार सम्पूर्ण रूप से नष्ट हो सकती है. इसके कीट पौधे की पत्तियों और इसके तने दोनों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए जब खेत में इसका प्रभाव नजर आने लगे तभी खेत में फोरेट का हल्का छिडकाव कर दें.
कैटरपिलर
चौलाई के पौधों पर लगने वाले इस रोग को इल्ली के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग की सुंडी पौधे के तने और पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती है. पत्तियों का रस चूसने की वजह से पत्ती पीली दिखाई देने लगती है. और कुछ दिन बाद ही सूखकर गिर जाती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
जड़ गलन
चौलाई के पौधों में लगने वाला जड़ गलन का रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. जो खेत में अधिक वक्त तक जल भराव या नमी बनी रहने की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधा मुरझाने लगता और कुछ दिन बाद पूरी तरह सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दे. और रोग दिखाई देने पर पौधों की जड़ों में बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
पाउडरी मिल्ड्यू
चौलाई के पौधों में लगने वाला ये रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों भूरे सफ़ेद रंग की चित्ती दिखाई देने लगती है. उसके बाद रोग बढ़ने की स्थिति में सम्पूर्ण पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर दिखाई देने लगताहै. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता हैं. और उसका विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या काढ़े का छिडकाव करना चाहिए.
फसल की कटाई
चौलाई के पौधों की कटाई हरी पत्ती और पैदावार के लिए दोंनो के लिए अलग लग वक्त पर की जाती है. हरी पत्तियों का इस्तेमाल सब्जी के रूप में होता है. इसके लिए इसके पौधों की कटाई बीज रोपाई के 30 से 40 दिन बाद ही कर ली जाती है. इसके पौधे एक बार रोपाई के बाद तीन से चार कटाई आसानी से दे सकते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जबकि दानो के रूप में इसकी पैदावार बीज रोपाई के बाद 110 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
पैदावार और लाभ
चौलाई के पौधों की अगेती रोपाई कर किसान भाई इसके पौधों की दो बार कटाई कर सकता हैं. उसके बाद इसके पौधों से उपज भी ले सकता हैं. जिससे किसान भाई को एक फसल से डबल मुनाफा मिल जाता है. लेकिन साधारण रूप से इसकी पैदावार से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से अच्छीखासी कमाई कर सकता हैं.