हर छोटे-बड़े बाजार में रेहड़ी वाले लाल-मटमैले रंग की छोटी बेरियां बेचते नजर आते हैं. इन्हीं खट्टी-मिठी बेरियों को फालसा कहते हैं. भारत में ये फलदार पेड़ सिर्फ स्वाद नहीं सेहत के नजरिये से भी काफी मायने रखता है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर में फुर्ती बढ़ाते हैं. वहीं कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस साइट्रिक एसिड, अमीनो एसिड़ और विटामिन ए, बी और सी भी सेहत का वरदान देते हैं. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो सेहत के अलावा आमदनी के नजरिये से इसकी व्यावसायिक खेती करने पर किसानों को ज्यादा फायदा होता है.
फासला की खेती
फालसा को तिलासिया प्रजाति का सदस्य फल कहते हैं, जिसमें 150 पौधों की प्रजातियां और शामिल है. बता दें कि इसके फल ही स्वादिष्ट नहीं होते, बल्कि इसके पौधों को भी लोग बड़े चाव से खाते हैं. इतना ही नहीं, गर्मियों में लू लगने से होने वाली समस्याओं को दूर करने में भी फासला काफी मददगार है.
किसान चाहें तो इसे मुख्य फसल के रूप में उगा सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो अमरूद और आम के साथ इसकी सह-फसल खेती करने पर ज्यादा फायदा होता है.
बीज समेत इसके पौधों को बढ़ने में काफी समय लगता है, इसलिये ज्यादातर किससान कलम यानी ग्राफ्टिंग और कटिंग विधि से ही इसके पौधों को उगाते हैं.
इसके पौधों के संरक्षण और अच्छी बढ़वार के लिये जीवांश और कार्बनिक पदार्थों वाली वर्मी कंपोस्ट ही खेतों में डालनी चाहिये.
फालसा की खेती किसानों के लिये इसलिये भी जरूरी है, क्योंकि ये कम मेहनत और प्रबंधन में ही किसानों को बढ़िया उत्पादन दे जाती है.
इसके पौधों को फलने-फूलने के लिये बस कटाई-छंटाई की जरूरत पड़ती है, जिससे रोपाई के सिर्फ सालभर के अंदर ही इसके पौधे से उपज मिलना शुरु हो जाती है.
इसकी खेती या बागवानी के लिये जुलाई-अगस्त में पौधों की रोपाई कर देनी चाहिये, जिससे नमी और आर्द्रतायुक्त वातावरण में इसके पौधों का बेहतर विकास हो सके.
मालामाल बना देगा फालसा
फालसा की व्यावसायिक खेती
करने पर किसानों को काफी लाभ होता है, क्योंकि खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियां फालसा से कई जूस, जैम और कैंडी जैसे कंफेशनरी प्रॉडक्ट्स बनाती हैं. यही कारण है कि वे फालसा की उपज को हाथोंहाथ खरीद लेती हैं.
बाजार और मंडियों में भी रेहडियों पर फालसा दिखते ही लोग इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं, इसलिये इसमें नुकसान की संभावना नहीं रहती. किसान चाहें तो एक एकड़ खेत में इसके 1200 से 1500 पौधे लगाकर बागवानी कर सकते हैं, जिसके सालभर के अंदर ही आराम से 50 से 60 क्विंटल तक उत्पादन
मिल जाता है.