खरीफ की तेलहनी फसलों में तीसी का मुख्य स्थान है। इसकी खेती एकल फसल के रूप में अथवा मिश्रित फसल के रूप में कर सकते हैं।
भूमि का चुनाव- खेत की तैयारी हेतु दो-तीन बार जुताई करके पाटा चला दें और खेत समतल कर दें। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से एवं शेष जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करनी चाहिए।
उन्नत प्रभेद
बुआई का समय
परिपक्वता अवधि (दिन)
औसत उपज (किवंटल/हे.)
तेल की मात्रा (अभ्युक्ति)
टी. 397
10 अक्तू- 15 नव.
120-130
10-12
40%, पैरा फसल हेतु उपयुक्त
सुभ्रा
10 अक्तू- 15 नव.
130-135
12-14
44%
गरीमा
10 अक्तू- 15 नव.
125-130
10-12
42%
श्वेता
10 अक्तू- 15 नव.
140-145
12-15
41%
शेखर
10 अक्तू -15 नव.
135-140
10-12 (10 किवंटल रेशा)
43%, पैरा फसल हेतु उपयुक्त
पार्वती
20 अक्तू -20 नव.
140-146
10-12(10 किवंटल रेशा)
42% सिंचित खेती हेतु
मीरा
20 अक्तू- 20 नव.
135-140
10-12(10 किवंटल रेशा)
42% सिंचित खेती हेतु
रश्मि
20 अक्तू -20 नव.
140-46
10-12(10 किवंटल रेशा)
42% सिंचित खेती हेतु
बीज दर- 15-20 कि.ग्रा.हे.।
बीजोपचार- बीज जनित रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए फुफुन्दनाशक दवा से बीजों को उपचारित करना जरुरी है। बुआई से पहले बीजों को वैबिस्टिन चूर्ण से २.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
बोने की दूरी- पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 0.5 सें.मी.
खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन – 8-10 टन सड़ी हुई कम्पोस्ट खाद खेत में अंतिम जुताई के समय खेत में बिखेर देना चाहिए। सिंचित अवस्था में 60 किलोग्राम नेत्रजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश तथा असिंचित अवस्था में 50 किलोग्राम नेत्रजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए।
प्रयोग विधि- सिंचित अवस्था में नेत्रजन की आधी मात्रा एवं स्फुर तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। नेत्रजन की शेष आधी मात्रा फूल लगने के समय उपरिवेशन करें। असिंचित अवस्था में नेत्रजन, स्फुर तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें।
सिंचाई- अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मृदा में पर्याप्त नमी बनाये रखना आवश्यक है। सिंचित अवस्था में दो सिंचाई करें। पहली सिंचाई फूल आने से पूर्व तथा दूसरी सिंचाई फलियों के लगने के समय करें।
रोग एवं व्याधि
लिनिसड मिज – वयस्क कीट सुंदर नारंगी रंग का होता है। मादा मक्खी पौधों के फूलों की कली में अंडे देती है, जिससे शिशु निकल कर फूलों की कली को खाता है, जिसके कारण गॉल का निर्माण होता है। फलस्वरूप उत्पादन में काफी कमी आ जाती है।
प्रबन्धन
– फसल की अगात बुआई करें।
– फसल चक्र अपनाएँ
– इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 1 मि.ली. प्रति 3 ली. पानी में घोलबनाकर छिड़काव करें।
– आक्सीडेमेटान मिथाएल 25 ई.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल का छिडकाव करें।
सेमिलपुर कीट- इसका वयस्क पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होता है। पंख पर सफेद रंग का निशान होता है। इसकी खास पहचान है कि ये अपने शरीर को वलय के आकार में मोड़कर चलता है। पिल्लू पौधों की पत्तियाँ खाकर नष्ट का देता है, जिसके कारण पौधों पर फूलों एवं फलों की संख्या काफी कम हो जाती है।
प्रंबधन
– खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
– खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
– आक्सीडेमेटान मिथाएल 25 ई.सी, का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
– हरदा रोग- इस रोग में पत्तियों पर पहले गुलाबी (रंग का धब्बा बनता है, जो बाद में तना एवं फली पर भी बनने लगता है। प्रभावित पत्तियाँ रंगहीन होकर सुख जाती है।
प्रबन्धन
– रोग रोधी किस्म का प्रयोग करें
– खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
– रोग ग्रसित पौधों को जला दें।
– मैन्कोजेव 75 घुलनशील चूर्ण का २ ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
– निकाई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन – तीसी फसल में 15 दिनों के अंदर अतिरिक्त पौधों की बछनी जरुर करें। बुआई के 25-30 दिनों तक खरपतवार से मुक्त रखें।
कटनी दौनी एवं भंडारण – जब पौधों का तना पीला होने लगे तब फसल की कटनी प्रारंभ कर देनी चाहिए। फसल कटनी के बाद कुछ दिन फसल सूखने के लिए छोड़ दें, इसके बाद दौनी का दाने को अलग कर लें। दौनी के बाद उचित भंडारण में भंडारित करें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, बिहार सरकार