मटर की खेती देश में एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती है। इसमें तितली मटर एक बहुउद्देशीय दलहनी कुल का पौधा है। तितली मटर (अपराजिता) अपने औषधीय गुणों के कारण दुनिया भर में मशहूर है। यहाँ तक कि इसके औषधीय गुणों को देखते हुए अब अपरजिता के फूलों से ब्लू टी बनाने पर काम किया जा रहा है। इसके फूलों से बनी चाय डायबिटीज के मरीजों के लिए भी लाभकारी होगी, क्योंकि इसमें पाये जाने वाले तत्व ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं। औषधीय के अलावा इसका उपयोग पशु चारे के रूप में भी किया जाता है। इसका उपयोग चारा पशु पोषण की दृष्टि से अन्य चारों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचन शील होता है। इस मटर की तना बहुत पतला एवं मुलायम होता है एवं पत्तियां चौड़ी एवं अधिक संख्या में होती है, जिस कारण से इसका चारा ‘हे’ एवं साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त माना गया है। अन्य दलहनी फसलों की तुलना में इसमें कटाई या चराई के बाद कम अवधि में ही पुनरवृद्धि शुरू हो जाती है।
किन किन देशों में होती है तितली मटर की खेती
तितली मटर की उत्पत्ति स्थान एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र एवं अफ्रीका को माना जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका, पूर्व और पश्चिम इंडीज, अफीका, आस्ट्रेलिया, चीन और भारत में की जाती है। इसकी खेती प्रतिकूल जलवायु क्षेत्रों में, मध्यम खारी मृदा क्षेत्रों में की जा सकती है।
तितली मटर की उन्नत क़िस्में
फसल के अच्छे उत्पादन के लिए बीज की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। किसानों को बीज का चयन करते समय अधिक उत्पादन तथा रोग प्रतिरोधकता को ध्यान में रखना बहुत ही आवशयक होता हैं। हालांकि तितली मटर की उन्नत किस्में इस प्रकार है :
काजरी–466,
काजरी–752
काजरी–1433
आईजीएफआरआई–23–1
आईजीएफआरआई–12–1,
आईजीएफआरआई – 40 –1
जेजीसीटी–2013–3 (बुंदेलक्लाइटोरिया -1)
आईएलसीटी–249
आईएलसीटी-278
मृदा एवं जलवायु तितली मटर प्रतिकूल जलवायु जैसे–सुखा, गर्मी एवं सर्दी के प्रति सहिष्णु है। यह विभिन्न प्रकार की मृदा, जिनका पी–एच मान 4.7 से 8.5 के मध्य रहता है, के लिए अनुकूलित है एवं मध्यम खारी मृदा के प्रति सहिष्णु है। यह विश्व के 400 से 1500 मि.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में समुद्र तल से 16,00 मीटर की ऊँचाई तक उगाई जाती है। यह जलमग्नता की स्थिति के प्रति अतिसंवेदनशील है। इसकी वृद्धि 15 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान तक नहीं रूकती, पर वृद्धि के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूलतम माना जाता है।
बुवाई के लिए बीजो की शुद्धता की परख
बुवाई के लिए बीज दर बुआई के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज शुद्ध फसल, 10 से 15 किलोग्राम बीज मिश्रित फसल के लिए, 4 से 5 किलोग्राम बीज स्थायी चरागाह एवं 8 से 10 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर अल्पावधि चरण चरागाह के लिए उपयोग में लेने चाहिए | बुआई 20–25 × 08 – 10 से.मी. दुरी पर एवं 2.5–3.0 से.मी. गहराई पर करनी चाहिए। इसके साथ ही बीजों को बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम 1–2 ग्राम अथवा थिरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। इसके बाद राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बोना चाहिए।
अधिक पैदावार के लिए उर्वरक
जल प्रबंधन एवं उर्वरक अधिक पैदावार लेने के लिए गर्मियों एवं लंबे सुखेत के दौरान सिंचाई करें।पहले वर्ष 10–15 किलोग्राम नाट्रोजन, 40–50 किलोग्राम फास्फोरस एवं इसके बाद 30 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष देना चाहिए। कटाई फसलों का कटाई समय पर करना चाहिए, जिससे मटर खेत में न गिर पाए। इसके अलावा मटर की कटाई फसल पकने पर ही करना चाहिए। अच्छे जड़ जमने के लिए पहले वर्ष इससे केवल एक कटाई लेनी चाहिए। इसके बाद सस्य प्रबंधन एवं वर्षा की मात्रा के आधार पर वर्ष में दो या दो से अधिक कटाई ली जा सकती है।उपज बरानी स्थिति में पहले वर्ष लगभग 1.1 से 3.3 टन सुखा चारा एवं 100 से 150 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर मिल जाता है, जबकि सिंचित स्थिति में लगभग 8–10 टन सुखा चारा एवं 500 से 600 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर मिल जाता है।
पशु के चारे में भी होता है इस्तेमाल
पशु चारे के रूप में महत्व पशु पोषण की दृष्टि से इसका चारा बहुत उपयुक्त माना गया है। चारे में सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है। चारा बहुत स्वादिष्ट एवं पाचनशील होता है, जिस कारण सभी पशु इसके चारे को बड़े चाव से खाते हैं। तितली मटर में प्रोटीन की मात्रा 19-23 प्रतिशत तक, क्रूड फ़ाइबर 29-38 प्रतिशत, एनडीफ 42-54 प्रतिशत, फ़ाइबर 21-29 प्रतिशत, एडीएफ 38-47 प्रतिशत एवं पाचन शक्ति 60-75 प्रतिशत तक होती है। जो इसे पशुओं के लिए उत्तम चारा बनाती है।