भारत में कुक्कुट पालन का उद्योग आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ही शुरू हो चुका था। कुक्कुट पालन मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख उद्योग था। हालांकि इसे 19वीं शताब्दी से ही वाणिज्यिक उद्योग के रूप में देखा जाने लगा था। कुक्कुट पालन में मुर्गियों की विभिन्न प्रकार की नस्लों का पालन कर उनके अंडे एवं चिकन का व्यवसाय किया जाता है। फसलों के विविधिकरण तथा मिश्रित खेती में मुर्गी पालन व्यवसाय भी किसानों के लिए फायदे का सौदा है। यदि मुर्गियों में कोई बीमारी न आए और मार्किट में अच्छा दाम मिल जाए तो यह व्यवसाय परिवार के पालन-पोषण में काफी हद तक सहायक सिद्ध हो सकता है। क्षेत्र के कई किसान कृषि के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करते है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, हैचरी, वर्मी कंपोष्ट, पशुपालन इत्यादि कार्य शामिल है।
Poultry farming : भारत में मुर्गियों की नस्लें | Chicken Breeds in India Hindi –
इसके लिए एक दिन का बच्चा खरीदा जाता है जो करीब 30 से 45 ग्राम का होता है जिसकी बाजार में कीमत 12 से 30 रुपये की होती है। बीस से तीस दिन बाद बच्चा जब एक से सवा किलो का हो जाता है तो इसे तंदूरी मुर्गा भी कहते है। बाजार में इसका भाव 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाता है। इसके अतिरिक्त 40 से 45 दिन के बाद बिकने वाले मुर्गे की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाते हैं। इस समय उसका वजन लगभग दो किलोग्राम होता है। हरियाणा में मुर्गी बेचने की मार्किट नहीं है। इसके लिए दिल्ली जाना पड़ता है, जहा खर्चे के अतिरिक्त कमीशन देना पड़ता है। एक कैंटर में 22 क्विंटल के करीब 100 मुर्गे होते है जिनकी मार्किट में कीमत एक लाख 32 हजार रुपये बनती है। इस प्रकार के मुर्गे 60 रुपये प्रति किलो तक बिक जाते है। 45 दिन में एक मुर्गा 72 रुपये से 100 रुपये तक दाना खा जाता है। एक मुर्गे पर लगभग 32 रुपए खर्चा निकालकर लाभ मिलता है। मुर्गी पालन में बीमारियों का अंदेशा अकसर बना रहता है। गुमारों सीआरडी, बर्ड फ्लू, कैक्सी सिटी आदि बीमारिया इस व्यवसाय के लिए घातक हैं। वैसे सरकार की तरफ से डाक्टर की सुविधा है।
भारत मे पायी जाने वाली अन्य नस्लें – Chicken Breeds in India Hindi
असेल नस्ल Aseel
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी अन्य नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन बहुत अच्छा होता है। इन मुर्गियों का व्यवहार बहुत ही झगड़ालू होता है इसलिए मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं। मुर्गों का वजन 4-5 किलोग्राम तथा मुर्गियों का वजन 3-4 किलोग्राम होता है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की गर्दन और पैर लंबे होते हैं तथा बाल चमकीले होते हैं। मुर्गियों की अंडे देने की क्षमता काफी कम होती है।
कड़कनाथ नस्ल Kadaknath –
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी है, जिसका अर्थ काले मांस वाला पक्षी होता है। कड़कनाथ नस्ल मूलतः मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पायी जाती है जो अन्य नस्ल के मीट की अपेक्षा अधिक है। कड़कनाथ नस्ल के मीट का उपयोग कई प्रकार की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से यह नस्ल अत्यधिक लाभप्रद है। यह मुर्गिया प्रतिवर्ष लगभग 80 अंडे देती है। इस नस्ल की प्रमुख किस्में जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन है।
इसे भी पढ़ें – मुर्गी पालन/कुक्कुट पालन कैसे शुरू करें : Poultry farming govt schemes
ग्रामप्रिया नस्ल Gramapriya –
ग्रामप्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे ख़ास तौर पर ग्रामीण किसान और जनजातीय कृषि विकल्पों के लिये विकसित गया है। इनका वज़न 12 हफ्तों में 1.5 से 2 किलो होता है। इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्रामप्रिया एक साल में औसतन 210 से 225 अण्डे देती है। इनके अण्डों का रंग भूरा होता है और उसका वज़न 57 से 60 ग्राम होता है।
स्वरनाथ नस्ल –
स्वरनाथ कर्नाटक पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय, बंगलौर द्वारा विकसित चिकन की एक नस्ल है। इन्हें घर के पीछे आसानी से पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न 3 से 4 किलोग्राम होता है। इनकी प्रतिवर्ष अण्डे उत्पादन करने की क्षमता लगभग 180-190 होती है।
कामरूप नस्ल-
यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%) इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
चिटागोंग नस्ल Chittagong –
यह नस्ल सबसे ऊँची नस्ल मानी जाती है। इसे मलय चिकन के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट तक लंबे तथा इनका वजन 4.5 – 5 किलोग्राम तक होता है। इनकी गर्दन और पैर बाकी नस्ल की अपेक्षा लंबे होते है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 70-120 अण्डे है।
केरी श्यामा नस्ल-
यह कड़कनाथ और कैरी लाल का एक क्रास नस्ल है। इस किस्म के आंतरिक अंगों में भी एक गहरा रंगद्रव्य होता है, जिसे मानवीय बीमारियों के इलाज़ के लिए जनजातीय समुदाय द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। यह ज्यादातर मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है। यह नस्ल 24 सप्ताह में पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न लगभग 1.2 किलोग्राम(मादा) तथा 1.5 किलोग्राम(नर) होता है। इनकी प्रजनन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग 85 अण्डे होती है।
झारसीम नस्ल –
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती है और प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती है। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।
देवेंद्र नस्ल –
यह एक दोहरी उद्देश्य चिकन है। यह पुरूष और रोड आइलैंड रेड के रूप में सिंथेटिक ब्रायलर की एक क्रॉस नस्ल है। 12 सप्ताह में इसका शरीरिक वज़न 1800 ग्राम होता है। 160 दिन में ये पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है। इनकी वार्षिक अण्डा उत्पादन क्षमता 200 है। इसके अण्डे का वज़न 54 ग्राम होता है।
कुक्कुट की नस्लें और उनकी उपलब्धता –
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर द्वारा विकसित नस्लें –
घर के पिछवाड़े में पाले जाने वाली नस्लें –
कारी निर्भीक (एसील क्रॉस)
एसील का शाब्दिक अर्थ वास्तविक या विशुद्ध है। एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इस देसी नस्ल को एसील नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसमें लड़ाई की पैतृक गुणवत्ता होती है। इस महत्वपूर्ण नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है। यद्यपि, इस नस्ल के बेहतर नमूने बहुत मुश्किल से मिलते हैं। इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है। एसील अपने आप में विशाल शरीर और अच्छी बनावट तथा उत्कृष्ट शरीर रचना वाला होता है। इसका मानक वजन मुर्गों के मामले में 3 से 4 किलो ग्राम तथा मुर्गियों के मामले में 2 से 3 किलो ग्राम होता है। यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है। वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 92 40 सप्ताह में अंडों का वजन (ग्राम)- 50
कारी श्यामा (कडाकानाथ क्रॉस) –
इसे स्थानीय रूप से “कालामासी” नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा है। मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिले तथा राजस्थान और गुजरात के निकटवर्ती जिले जो लगभग 800 वर्ग मील में फैला हुआ है, इन क्षेत्रों को इस नस्ल का मूल गृह माना गया है। इनका पालन ज्यादातर जनजातीय, आदिवासी तथा ग्रामीण निर्धनों द्वारा किया जाता है। इसे पवित्र पक्षी के रूप में माना जाता है और दीवाली के बाद इसे देवी के लिए बलिदान देने वाला माना जाता है। पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
इस नस्ल का मांस काला और देखने में विकर्षक (रीपल्सिव) होता है, इसे सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि औषधीय गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है। कडाकनाथ के रक्त का उपयोग आदिवासियों द्वारा मानव के गंभीर रोगों के उपचार में कामोत्तेजक के रूप में इसके मांस का उपयोग किया जाता है। इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है।
– 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
– यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
– वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 105
– 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
– जनन क्षमता (प्रतिशत)- 55
– हैचेबिल्टी एफ ई एस (प्रतिशत)- ५२
हितकारी (नैक्ड नैक क्रॉस) –
नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है। जैसे इसके नाम से पता लगता है कि पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।