9 दशक पहले जब कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की शुरुआत हुई तब देश की कृषि प्रकृति व भाग्य पर आधारित थी. उसे भाग्य से परिश्रम के आधार पर परिवर्तित करने का काम कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों ने किया.साकारी क्षेत्र का कोई भी यूनिफाइड डेटाबेस नहीं है और जब तक डेटाबेस नहीं होगा आप इस क्षेत्र के विस्तार के बारे में नहीं सोच सकते हैं और विस्तार तभी हो सकता है जब आप जानते हो कि विस्तार कहां करना है नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में सहकारिता मंत्रालय ने सरकारी क्षेत्र का डेटाबेस बनाने का काम शुरू कर दिया है.
मोदी जी के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय पीएसीएस को बहुआयामी बनाने की दिशा में काम कर रहा है ,और हमने इसके लिए मॉडल बाय लॉ बनाकर प्रदेश में भी चर्चा के लिए भेजे हैं. सहकारिता के तत्वों को बढ़ाते हुए हम 70-80 साल पुराने कानूनों को बदलकर पीएसीएस के में नई नई गतिविधियां जोड़ने का काम कर रहे हैं. देश के 70 करोड़ गरीब को संविका समावेशी विकास की प्रक्रिया में अगर कोई क्षेत्र भागीदार बना सकता है तो हमारा सहकारिता क्षेत्र ही बना सकता है.
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह आज नई दिल्ली में कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक को के राष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए इस अवसर पर केंद्रीय सहकारिता और पूर्वोत्तर मामले में राज्य मंत्री श्री बी एल वर्मा सहकारिता मंत्रालय के सचिव एनएसयूआई के अध्यक्ष और इसको के अध्यक्ष श्री दिलीप संघाणी अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन एशिया प्रशांत क्षेत्र के अध्यक्ष तथा डॉक्टर चंद्रपाल यादव सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे
इस अवसर पर देश के पहले केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकारिता का आयाम कृषि विकास के लिए बहुत अहम है और इसके बिना प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की किसानों की आय को दोगुना करने की परिकल्पना को हम पूरा नहीं कर सकते कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का इतिहास भारत में लगभग 9 दशक पुराना है कृषि ऋण के दो अस्तंभा लघु कालीन और दीर्घकालीन 1920 से पहले इस देश का कृषि क्षेत्र को नेता अकाशी खेतों पर आधारित था. जब बारिश आती थी तो अच्छी फसल होती थी 1920 के दशक से किसानों को दीर्घकालीन ऋण देने की शुरुआत हुई. जिससे अपने खेत में कृषि के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के किसान के सपने को पूरा किया जा सके.